शीर्षक:प्रकृति नव उत्सर्जन
शीर्षक:प्रकृति नव उत्सर्जन
माना मैने प्रकृति की सुंदरतम छवि को
आज देखा एक ठूठ पेड़ में भी नव सृजन
बीज अंकुरण तो स्वाभाविक हैं पर
यह ईश्वर की लीला न्यारी कैसे निकला
एक ठूठ से नव जीवन प्रणाली
देख उसे जब ह्रदय के कोमल भाव बोले
स्वयम ही परस्फुटित बाहर निकले और बोले
चली कलम स्वतः ही भाव बाहर निकले
देख प्रकृति की नवीन चाल को मन हुआ बेचैन
कैसे निकला एक ठूठ से यह नव जीवन प्राण
माना वो सूख गया था हुआ निष्प्राण
फिर कहां से आया उसमे ये नव संचार
देख उसे उद्वेलित अंतर्मन में हुआ भाव संचार
भाव विभोर हो गई देख प्रकृति की यह नवीन चाल
तब शब्द स्वतः जो फूटे रूप बने प्रकृति श्रंगार
पर ये नव अंकुर है क्या जीवन की ललक
अब तो मन मे प्रश्न यही उठता नवजीवन की चहक
क्या पुनः पेड़ बन छाया देकर पथिक को महक
मानव पर फिर से देगा अपना परिश्रम अथक
मान लिया मेने भी आज देख रूप नव सृजन।
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद