शीर्षक:पावस ऋतु
सुहानी पावस ऋतु आई संग में अपने लेकर
प्रकृति के बहुत से मनोहारी दृश्य परिवर्तन
पर्वत, पहाड़, ताल, झरने भी स्नेह जल से भरमाये
प्रकृति भी नैसर्गिक भावनाओं से ओत-प्रोत शरमाये
ताल तलैया भी जल में अपना महाकार दिखलाये
सब हैरान दिखते मानो खुशियां झोली भर जाये
पर्वतों से बहते झरने मोतियों की लड़ियां सी भरमाये
सुहानी पावस ऋतु आई संग में अपने लेकर
प्रकृति के बहुत से मनोहारी दृश्य परिवर्तन
वर्षा ऋतु में मौसम बदलता रहता रूप
कभी तेज़ वर्षा होती तो कभी तेज धूप
प्रकृति के हर एक कण में निखरता रूप
मानो सभी मे वास हो प्रभु के निराले विरले रूप
सब कुछ होता प्रकृति के ही अनुरूप
सुहानी पावस ऋतु आई संग में अपने लेकर
प्रकृति के बहुत से मनोहारी दृश्य परिवर्तन
जल पहाड़ों के नीचे इकट्ठा हो मानो चमके दर्पण
पर्वत पर अनगिनत फूल खिलते मानो हो अर्पण
ऐसा लगता कि अनेकों नेत्र खोलकर पर्वत समर्पण
पर्वतों पर बहते झरने मानो करते गौरव गान अर्पण
झरने गिरते पहाड़ो से मानो गान कर रहे हो अर्पण
सुहानी पावस ऋतु आई संग में अपने लेकर
प्रकृति के बहुत से मनोहारी दृश्य परिवर्तन
लंबे-लंबे वृक्ष आसमान को निहारते चिंतामग्न
प्रकृति का हर एक रूप मानो हो नृत्य में मग्न
अचानक काले-काले बादल घिर आते निर्विघ्न
कि मानो बादल रुपी पंख लगाकर पर्वत आनंदित
उड़ना चाहते हो,कोहरा धुएँ जैसा होता आच्छादित
सुहानी पावस ऋतु आई संग में अपने लेकर
प्रकृति के बहुत से मनोहारी दृश्य परिवर्तन
पर्वतीय प्रदेश में जब मूसलाधार वर्षा होने लगती
पर्वतों पर उगनेवाले शाल के वृक्ष दिखाई नही देते
सबतरफ पानी से खुशहाली मानो पुकार करने लगती
तब ऐसा लगता जैसे घबराकर धरा में छुप जाते मानवीकरण अलंकार का अद्धभुत प्रयोग पावस ऋतु
सुहानी पावस ऋतु आई संग में अपने लेकर
प्रकृति के बहुत से मनोहारी दृश्य परिवर्तन
पावस ऋतु में आकाश में बादल छा जाते
कभी वर्षा होती तो कभी आसमान में बादल छाते
सभी के घरों में अपने अपने निकल आते छाते
अदृश्य हो जाते कभी बादल अटखेलियां करते
वर्षा के कारण पर्वत झरने झर-झर बहने लगते
सुहानी पावस ऋतु आई संग में अपने लेकर
प्रकृति के बहुत से मनोहारी दृश्य परिवर्तन
वातावरण में संगीत उत्पन्न मानो करता
समतल भूमि पर जल एकत्रित हो जाता
वर्षा का पानी धरती माँ की प्यास बुझा जाता
हवा के चलने के कारण वृक्ष भी झूमने लगता
पूरी प्रकृति नृत्य करती सी प्रतीत होने लगती
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद