शीर्षक:पापा सी महत्वकांक्षा
शीर्षक:पापा सी महत्वकांक्षा
मेरी महत्वकांक्षा तो बहुत है
और मन मे जिज्ञासा भी बहुतायत में
और मेरे मन की ख्वाहिशें भी बहुत है
पूर्णता चाहती हूँ मैं सभी मे
पर क्या पूर्ण होती हैं महत्वकांक्षा
यकायक प्रश्न घर कर जाता हैं न जाने क्यों..?
सोचती हूं तुम्हारा साथ होता पापा अभी भी
खोल देती मन मे उठे प्रश्नों को सूची
क्योंकि आप संभाल लेते थे स्वयं सब परिस्थितियों को
आपका परिवार के प्रति समर्पण याद आता हैं
मन मे महत्वकांक्षा आज भी हैं
आप जैसी बन कर पाऊँ परिवार के लिए
हो जाऊं मै भी आप सी महत्वकांक्षी
अपने घर के लिए,अपनो के लिए
स्वयं में स्वयं को खोजते हुए
नफरत भूल सभी को स्नेह बरसाती हुंई
मैं चलती रहूँ अपनी महत्वकांक्षा को साथ लिए
बस यूँ ही आपको याद करते हुए
जीवन पथ की लंबी सी यात्रा पर
स्वयं में पूर्णता चाहते हुए,महत्वकांक्षा लिए
अथक,अनादि,अनंत महत्वकांक्षा समेटे
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद