शीर्षक:पापा की याद बादल सी
शीर्षक:पापा की याद बादल सी
अब तो बस…
पापा की यादों के बादल से उठते हैं
हिलोरे मारते हैं बीती बातो की यादो के
बिन कहे आज भी मानो कुछ कह जाती हैं यादे
आ जाती हैं कभी भी सोते हुए भी जागते हुए भी
उमड़-घुमड़ बादलो समान यादो की उथलपुथल
मैं सदा सुनती अपने दिल की धड़कनों को
अब तो बस…
पापा की यादों के बादल से उठते हैं
यादो में आज भी बारिश सी होती यादो की
कभी यादो की अताह, असीमित दायरा मानो
घनघोर बादलो से आने वाली तेज बरसात सी
मन में घनघोर बारिश की पिछवाड़ा ही उठी हो
वैसे ही पापा के साथ बीते समय की यादो का
अब तो बस…
पापा की यादों के बादल से उठते हैं
यूँ ही मुंडेर पर कभी कभी तेज बारिश की आवाजें
कभी आँगन में रखे बर्तनों पर पड़ती बूंदों की आवाजें
झर- झर- झरती पापा की यादो की बढ़ती आवाजे
यादों की खुशबू मानो मिट्टी पर बूंदों की सोंधी खुशबू
आज भी मेरे मन के किसी कोने के बैठी यादे
अब तो बस…
पापा की यादों के बादल से उठते हैं
पर क्या पापा को पता होगा कि बिटिया किस हाल में है
आपको बिन छुए ही मैने कैसे मान लिया था कि
आप छोड़ कर जा चुके थे मुझे यूँ ही तड़फते हुए
मेरा मन कहीं आज भी घुमड़ता हैं यादो के बादलो सा
तुम्हारे मौन-स्नेह को आज भी सहेज रख लेती हूँ
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद