शीर्षक:पापा की जुबानी उलझी सी जिन्दगानी
शीर्षक:पापा की जुबानी उलझी सी जिन्दगानी
ए जिंदगी तू कितनी उलझी सी क्यों हैं..?
बिन स्वर की गजल सी क्यों हैं
आ मेरे शब्दों में तरंग डाल और स्वर लहरी बनाये
पापा की जुबानी उलझी सी जिन्दगानी
कठिन से शब्दों में भी जान सी डालती चल तू
ठहरी सी जिंदगी में कुछ तरंग सी डाल तू
दुख सुख तो गिरगिट सा बदलता हैं खुशियां डाल तू
पापा की जुबानी उलझी सी जिन्दगानी
आओ हँसते हँसते जिंदगी को पार करते हैं
समुद्र के किनारों के बीच बहते पानी सा जीवन हैं
कभी दुख कभी सुख दो नदी के किनारे से है
पापा की जुबानी उलझी सी जिन्दगानी
हर दिन नया सिखाती जिंदगी जीने की राह हमें
गमो को हँस कर पार करें हम या दुख रुलाये हमें
गमो से ही बहुत कुछ सिखाती हैं जिंदगी हमें
पापा की जुबानी उलझी सी जिन्दगानी
ए जिंदगी तू तो सिखाती हैं हर सांस में जीना
दुख के साथ चलना है बस खुशियों को जीना
बहुत मुश्किल है जीवन राह में अपनो के बिना जीना
पापा की जुबानी उलझी सी जिन्दगानी
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद