शीर्षक:दिशा
ऐ जिंदगी
मैं दिशाहीन नही हूँ
बस तुझे समझने को प्रयासरत हूँ
कभी परिभाषित तो कभी शून्य पाती हूँ
कभी खुद को खुद में समेट लेना चाहती हूँ
कभी समर्थ तो कभी असमर्थ सा पाती हूँ
ऐ जिंदगी
मैं दिशाहीन नही हूँ
कभी असमंजस तो कही सुलझा हुआ पाती हूँ
कभी कालचक्र में खुद को उलझा सा पाती हूँ
कभी सुख दुःख के बीच घिरा खुद को देखती हूँ
कभी नितांत अकेली तो कभी सबको साथ पाती हूँ
ऐ जिंदगी
मैं दिशाहीन नही हूँ
कभी खुद से ही जीवन भ्रमण करती सी पाती हूँ
तो कभी स्वयं को स्थिर सा ही देख पाती हूँ
कभी संभलती सी तो कभी उलझी गई देखती हूँ
जीवन यात्रा में स्वयं को उलझा सा भी मानती हूं
ऐ जिंदगी
मैं दिशाहीन नही हूँ
कभी स्वंय को सम्भलते हुए देखती हूँ
तो कभी मुश्किलों के दलदल में फंसी सी देखती हूँ
पर अपनी जिम्मेदारी से कभी नही भागती हूँ
परेशानियों का डट कर सामना भी तो कर लेती हूँ
ऐ जिंदगी
मैं दिशाहीन नही हूँ
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद