शीर्षक:गंगा माँ की गोद में
**** गंगा माँ की गोद ****
माँ गंगा की गोद मिले भरपूर आमोद..
ये पहाड़ों के बीच से निकलती जलधारा
इसकी भी मदमस्त सी अपनी दुनिया हैं
कलकल करती मधुर संगीत गुनगुनाती
शांत माहौल में भी धुन बिखरा देती हैं
माँ गंगा की गोद मिले भरपूर आमोद..
स्नेह शांति का पाने को गोद मे उसकी चली गई
आने द्वेष- राग को त्याग माँ गंगा तट पर लेट गई
कलकल जल का अपना संगीत बना
पर मेरा तो सारा दर्द मानो माँ गंगा ने समेट लिया
माँ गंगा की गोद मिले भरपूर आमोद..
कब मिलता इतना सुकून की हम शांत रह पाए
पर बैठ माँ गंगा के तट पर भरपूर सुकून हम पाए
जल का अपना जीवन गीत बना जो करता कलकल
कितनी भी ऋतुएं बदले पर चलता अपनी गति अटल
माँ गंगा की गोद मिले भरपूर आमोद..
कब देख पाए जल को अविरल ऐसे चलता देख
भागमभाग की जिंदगी में सब जाता पीछे छूट
आज सिर रख माँ के तट पर शांत आह्लादित मन
तपती रेत से निकल जल कर जाता उसको भी शांत
माँ गंगा की गोद मिले भरपूर आमोद..
कलयुग में सतयुग जीना तो आँचल माँ का पकड़ो
माँ गंगा के तट पर आकर माँ को स्पर्श करो
साक्षात माँ की गोदी में लेट भर लो नेह पूर्ण
हो जाएगी जीवन यात्रा सच मे ही परिपूर्ण
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद