शीर्षक:क्यो सम्मान नही
माँ मैं कोमल लता सी तेरा ही रूप हूँ
मुझे लता समान ही सम्बल ले चढ़ने तो दो
मुझे नियति ने तुम्हे सौंपा हैं मुझे जीने तो दो
मैं स्वयं ही क्यों जिम्मेदार हूँ बेटी होने का
मुझे क्यों सम्मान नही बच्चे सा..?
मैं कोमल सी बेल चलना चाहती हूँ
सहारा ले आपका अपनी मंजिल तक
मुझे भी खुली हवा तक जाने तो दो
अपना रास्ता बेल समान ही चुनने तो दो
मुझे क्यों सम्मान नही बच्चे सा..?
मैं तुम्हारे गुलशन रूपी परिवार की नव कलिका हूँ
मत तोड़ो मुझे खिलने से पहले ही
रास्तो के कांटो को भी मैं सह जाऊंगी बस
अपनी बाहों का बेटे समान ही सम्बल तो दो
मुझे क्यों सम्मान नही बच्चे सा..?
मेरे जीवन की बेल तो तुम्हारे गुलदस्ते रूपी
कोख से ही बेटे समान ही पनपी हैं
तो फिर मुझे तुम तो समझो और बढ़ने दो
मैं जीवंत हूँ मुझे भी बढ़ने तो दो
मुझे क्यों सम्मान नही बच्चे सा..?
बस अपने सम्बल का सहारा रूपी खाद दो
मैं स्वयं ही कर जाऊंगी अपने जड़े मजबूत
देखा उच्च शिखर तक होगी लहर मेरी
मेरी जड़े स्वयं ही जकड़ लेंगी अपना स्थान
मुझे क्यों सम्मान नही बच्चे सा..?
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद