शीर्षक:आस्तीन का सांप
शीर्षक:आस्तीन का सांप
“कभी सोच कर भी बस सब्र यूं कर लिया मंजु ने
कुछ लोग तो छिपे आस्तीन के सांप हुआ ही करते हैं”
आज हम जिस विषय पर बात करने जा रहे हैं बहुत ही रोचक है।मुहावरों की भी अपनी दुनियां हैं जब जी जहाँ हम सब को सटीक लगता हैं हम उसका प्रयोग कर ही लेते हैं।आज मैं “आस्तीन के सांप” विषय को लेकर लिखने का एक छोटा सा प्रयास कर रहीं हूँ।आशा हैं सही शब्दो द्वारा आपके सामने प्रस्तुत कर सकूँ।कोई त्रुटि रहे तो अग्रिम क्षमा चाहती हूँ।बहुत विद्वान सुधि जन इस पटल पर मेरे साथ जुड़े हैं सभी का स्वागत करुँगी आप मार्गदर्शन जरूर कीजियेगा।
पहचानना मुश्किल है गर सामने भी रहे हो तो।
इंसानों के बीच कुछ अपने छली हुआ करते हैं।।
आस्तीन का सांप होना मुहावरे का अर्थ और वाक्य मे प्रयोग आस्तीन का सांप होना मुहावरे का अर्थ कपटी मित्र या कपटी अपनो के बीच मे छिपा कोई अपना ही करीबी। आस्तीन का सांप होना ही एक अर्थ लेकर आता है और ऐसे मित्र के रुप की और संकेत करता है जो आपका बुरा चाहता है और आपको नुकसान करने मे भी पीछे नही रहता है ।कुछ इस तरह ढालो खुद को की आपको कोई फर्क ही न पड़े की सामने वाला आपको हानि पहुंचकर खुश हो या फायदा देकर खुश।तो आइए इस शब्दो द्वारा कुछ अपने को ऐसा ही बनाने का प्रयास अवश्य करें:-
सब कहते हैं “तुम्हारी आस्तीन में सांप रहते हैं”
मैं बोली कि – “क्या करूँ मैं मेरा वजूद ही चन्दन साहै!”
आस्तीन का सांप होना मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग कुछ इस और भी संकेत करता है।
१-धोखेबाज होना
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(प्रत्येक गतिविधि से पता चलना कि वो आपको समय मिलने पर छलेगा ही)
२- सिद्धांतहीन होना
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(बस छल के उद्देश्य से दिखावा मात्र करना)
३-चुपचाप आना
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(बस नुकसान के उद्देश्य से)
४-हैरान होना
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(आपकी उन्नति से परेशान हो अपनापन दिखाना)
इन पंक्तियों से मैं इस मुहावरे को समझने का प्रयास करती हूँ कि:-
दूध कितना पिला दो, सांप जहर ही उगलते है,
जो व्यक्ति कपटी है वो एक दिन सबको जरूर छलते है।
आस्तीन का सांप होना मुहावरे का अर्थ धोखेबाज होना ही होता है। आस्तीन का सांप होना मुहावरे का वाक्य प्रयोग हम धोखे के रूप में ही करते हैं। मुहावरा शब्द एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ होता है–अभ्यास करना। मुहावरे वाक्य के अंश होते हैं। मुहावरों से सामान्य अर्थ नहीं बल्कि, विशेष अर्थ निकलता है। इनके प्रयोग से भाषा में सरसता व रोचकता आ जाती है। इनका प्रयोग वाक्यों में ही जाने वाली अन्य बातों के साथ जुड़कर होता है। वाक्यों में मुहावरों का प्रयोग किया जाता है, अर्थों का नहीं। हिंदी के कुछ विद्वान मुहावरा को वाग्धारा अथवा रोजमर्रा की भाषा भी कहते है। किंतु प्रचलित भाषा में मुहावरा ही है और इसी रूप में हम सबको इसकी पहचान भी हैं।तो आइए और सचेत होकर अपना कार्य पूरी ईमानदारी से करें हम क्या अच्छा कर सकते हैं बस उस पर आपका पूरा ध्यान रखें ये बिना सोचे कि कोई दूसरा क्या कर रहा है।मेरा मानना है कि हम स्वयं में कितना सुधार कर सकते हैं करे प्रयासरत रहें।हर व्यक्ति दूसरे से अलग है और अलग ही सोच होती है।तो आइए करें अपना काम
“इंसान कलयुग इतना डसने लगे है,
कि बेचारे सांप भी आजकल उससेडरने लगे है”।
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद