शीर्षक:अविस्मरणीय सा प्रेम
🌱अविस्मरणीय सा प्रेम🌱
अविस्मरणीय सा प्रेम..!
अनुत्तरित सा प्रेम विस्तारित सा प्रेम
मानो कोई छोर नही हो उसका
दूर जहाँ तक नजर जाए वहीं तक
फैलाव हो मानो प्रेम जाल का
मानो साक्षात प्रभु ने ही भेज दिया हो
स्वयं को प्रेम रूप धारण कर देह में
सोचकर मेरे लिए उचित प्रस्तुतिकरण
मेरी किस्मत के जीवन डगर में
आह्लादित पर अभिव्यक्ति पूर्ण
मानो पूर्णता से परिपूर्ण हो प्रेम
न हो उसके बाद कोई भी चाह बाकी
अनबुझ सी अभिव्यक्ति का अहसास
दिलाता है मेरा प्रगाढ़ प्रेम
मानो सूरज के समान सोलह कलाओं से
मदमस्त सा,अभिभूत सा,निश्छल सा
अविस्मरणीय सा प्रेम
प्रतीक्षारत रहता है सदैव ही कि मानो
रतजगे के बाद सूर्योदय होगा दमकता सा
आकाश भी मानो पुष्पांजलि लिए हो प्रतीक्षारत
मूक सा प्रेम मानो भानू व आकाश के सम
अबूझ सी अभिव्यक्ति समेटे स्वयं मेँ
प्रतीक्षारत सदैव ही
अविस्मरणीय सा प्रेम
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद