शीतलहर के हलकोरों में, नव वर्ष नहीं मनाया जाएगा
खेतों की हरियाली सहमी, सहमी किसानों की नरमी है
पेड़ों से पत्ते भी गिरते है, बाखर की तुलसी सहमी है
झूलसे है अरहर के फूले, वसंत की छूटी अंगड़ाई है
नभ मण्डल में धुंध श्वेत का, गेहूं जौ पर ओंसे छाई है
ठिठुर रही हैं धरती माता, मंगल जयगान कहा समाएगा
शीतलहर के हलकोरों में, नव वर्ष नहीं मनाया जाएगा
माघ पौष के ऋतु सर्दी में, बूढ़े बच्चें घर में दुबके है
फाल्गुन के चंचल रंग विरंगी, अभी कहां वह ठुमके है
शरद ऋतु के अटखेली में, बैठी चम्पा और चमेली है
अनोखी पराकाष्ठा प्रकृति की, ऋतु वसंत अलबेली है
कुछ और प्रतीक्षा करनी है, नव वर्ष हमारा आएगा
शीतलहर के हलकोरों में, नव वर्ष नहीं मनाया जाएगा
नदियां झरने झील सरोवर, नीरव रस की धारा शीतल है
आने वाले चैत्र मास में, शुचि त्यागी सरलता उज्ज्वल है
चैत्र प्रति पदा शुक्ल पक्ष, माता रानी भी इंतजार करेगी
प्रणोदक अरुणोदक वर्णित, प्रकृति सजल श्रृंगार करेगी
अन्न भंडारण भरा रहेगा, उल्लासों रंगों की लाली छाएगा
शीतलहर के हलकोरों में, नव वर्ष नहीं मनाया जाएगा