शीतलता पँहुचाता कौन
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ऋतु सावन के सिवा सभी को, शीतलता पँहुचाता कौन।
मनभावन सौंधी खुशबू से, धरती को महकाता कौन।
कोयल कूक रही बागिया में, बौराए आमों के बाग।
बिना कूक सारे आमों में, बोलो शहद मिलाता कौन।
झूले खूब पड़े बागों में, रिमझिम वर्षा की बौछार।
सावन के आकर्षण से अब, बोलो है बच पाता कौन।
भँवरों का गुंजन मनभावन, देखो सबको लेता मोह।
कलियां खिल कर न महके तो, अलि को खूब रिझाता कौन।
पथ में पुष्प शूल दोनों हैं, कम मत होने दो उत्साह।
दुनिया में केवल दुःख होते, सुख की आस लगाता कौन।
स्वयं पहल करनी पड़ती है, तभी हमें मिल पाता लक्ष्य।
अगर अहर्निश नदी न बहती, सागर से मिलवाता कौन।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०६/०५/२०२२