*”शिव शम्भू सा कोई ना जग में”*
शिव शंभू
शिव शम्भू सा कोई ना जग में ,
ओघड़दानी ओ त्रिपुरारी अदभुत रूप निराला।
माथे पे त्रिपुंड शीश गंगा विराजे ,
तन पे भस्मी कमर में मृगछाला।
शिव शम्भू सा कोई ना जग में…..
करुणा सागर दयालु भोले शंकर ,
कर में गरल का लिए हो प्याला।
हलाहल विष पीकर नीलकंठ महादेव कहाये हो गए मतवाला।
शिव शम्भू सा कोई ना जग में….
त्रिनेत्र त्रिलोकीनाथ विश्वनाथ कहलाए ,
दानव अचंभित रह गए ,नंदी भृंगी नृन्य करत नाचत होके मतवाला।
शिव जी का डमरू डम डम बोले ,
तैतीस कोटि देव बारात लेकर चले ,गौरा संग ब्याह रचा पहनाई फूलों की माला।
शिव शम्भू सा कोई ना जग में…
दर्शन की अभिलाषा लिए शशि दासी,
दीवाने हुए भक्त सारे कृपा बरसाओ हम झूमे नाचे गाये होके मतवाला ।
दीन दुखियों के दुःख को हरते है ,
शिव शंकर भोले नाथ अजब गजब तेरा खेल है निराला।
शिव शम्भू सा कोई ना जग में…
शशिकला व्यास✍️