शिव-शक्ति लास्य
छेड़े वीणापाणि ने वीणा के तार,
हुए एकत्र देवगण सभी कैलास।
देवों में था छाया आनन्द अपार,
हुए सकल शिव आनन्द के दास।
अद्भुत नृत्य कौशल हुआ प्रदर्शित,
करते तांडव आज स्वयं नटराज।
देख चरण-भुजा, कटि-ग्रीवा मुद्रा,
हुए भाव-विभोर देवगण आज।
साक्षी यक्ष, गंधर्व और किन्नर,
देवविष्णु मृदंग बजाते सहास।
अमृत वर्षण होता कैलाश पर,
देवोत्तम यह अक्षय पुण्य मास।
अमृतवेला ब्रह्ममुहूर्त की, प्रदोषकाल,
अद्भुत अंग-संचालन करें प्रभु आज।
पुलकोल्लसित देवगण हों आनन्दित,
देवदुर्लभ विलोल-हिल्लोल करें नटराज।
देख शिव का अद्भुत नृत्य अभ्यास
आईं देवी भगवती महादेव के पास
क्यों न समस्त संसार देखे ये लास।
प्राणियों में भी हो संचारित उल्लास।
स्वयं महाकालिका का अनुरोध व
संगीतमय वातावरण का सुवास।
महाकाल कैसे करें भला अस्वीकार,
दिया वचन, मर्त्यलोक देखेगा रास।
धर लिया रूप काली ने कृष्ण का,
बन राधा, महादेव भी आये पास।
अहा! देवगण, सब गोप-गोपिकाएँ,
और मनभावन यह वृंदावन वास।
हुआ वाङ्मय अलौकिक धरती पर,
है सुधापान चक्षुओं से,या ‘महारास’,
पीता पीयूष सुभग सकल संसार,
देख शिव-शक्ति का ऊद्भुत लास।