शिव बारात की झाँकी
रूप विरूप महेश धरे जब ठाढ़ि भये हिमवान के आगे।
बारात न ऐसी आई कहौं सब बोलत देखन दौड़त भागे।
बाराती ऐसे चित्र विचित्र न जाय बतावै काहू को साँचे।
नंग धड़ंग अउ अंग बेढंगे हुड़दंग मचाय रहे सब नाचें।
भूत पिशाच प्रेत गण साथी देव सभी बारात में नाचें।
ढोल नगाड़े मृदंग बजाय के तुरही श्रृंगी जोर बजावैं।
भोले के तन पे भस्म भभूति मुण्डन की गलमाला सोहै।
कण्ठ में नाग श्रवण में बिच्छु कर में डम डम डमरू मोहै।
रूप भयङ्कर देख के मैया मैनावती भईं व्याकुल भारी।
अगुवानी को जाय सकीं नहिं तब बेसुध होय गिरीं महारानी।
हाहाकार मचा जब देखा तो चिंतित हुए सभी नर नारी।
ज्ञात हुआ जब हाल समस्त तो विनती करत हैं मैनादुलारी।
नारद ब्रह्मा माधव देखत बूझत लीला शंकर की सारी।
शिव को समझाय मनाय सजावत छवि उन की मनोहारी ।
अद्भुत सज्जा दिव्य कान्तिमय कनक स्वर्ण आभूषण धारी।
देखत सृष्टि सकल इस रूप को अन्तर्मन सब होय सुखारी।