शिव जी प्रसंग
श्वेत शैल, सिंहासन हिम गिरी, नन्दी की सवारी
बाघम्बर का छाला पहनें, महादेव त्रिपुरारी
सुशोभित भुजा में बांधे, रुद्राक्ष की माला
पहनें हीरा मोती आभूषण, भुजंग मुंड की माला
शशिभूषण मस्तक पर राजे, जटा में गंगा माता
हृदय में बसते रघुनंदन जी, परमपूज्य का नाता
नटराज हिमांचल घर पर, स्वांग रचाने आए
कण्ठ में विष को धारण करके, नीलकण्ठ कहलाए
रुपदेख भोले नाथ की, मूर्छित हुई मैना रानी
परछन करने कैसे जाएं, व्याकुल हैं महारानी
शहनाई धूम धूमी बजाएं, भूत प्रेत संग घराती
बच्चें सहमे घर में बैठे, संग में भूत प्रेत बाराती
सब वर आते रथ घोड़े पर, यह आया बैल सवारी
खाने वाला भांग धतूरा वर से, नहीं ब्याहू गिरजाकुमारी
हे नारद तुम मिथ्या वासी, बहु रहे से पर्वती न ब्याहूंगी
तनुजा लेकर डूब मरूंगी, गिरी चढ़ कर मैं कूद पडूंगी
ब्रह्म वेद ब्रह्माणी लक्ष्मी, संग आए पालन हार
हिमांचल के महारानी को दिया वचन आधार
मुख मण्डल सुशोभित ऐसे, लज्जित काम सलोने
मुकुट विराजत, शीश धरा पर, चमके चहू दिसि कोने
थाली आरती लिए मैना, करने लगी हैं परछन
विधि विधान से सम्पूर्ण हुआ हैं, संबंधों का पूजन