शिव का आवाहन
हे शिव शंकर हे महाकाल।
अब दिखलाओ अपना रूप विकराल।।
हर तरफ मच रहा बवाल।
आज फिर उठ रहा तुम्हारे अस्तित्व पर सवाल।।
कौन करेगा इस संसार की देखभाल।
धारण कर एक बार फिर रूप विकराल।।
अब अपने भक्तों की पीड़ा का ले संज्ञान।
समुद्र मंथन में तुमने पी हलाहल किया जग कल्याण।।
हम सब का आश टूट रहा।शरीर से प्राण छूट रहा।।
दुष्टों का तू कर संघार।
बेड़ा सबका कर तू पार।।
क्या राजा क्या रंक सब हार गए।
कोरोना ने किया ऐसा हाल कि सब धरती को चाट गए।।
न जाने किसने इस विष को बाँटा है।
इसमें किसी एक का नहीं, हम सब घाटा है।।
क्या धरती क्या आकाश सब काँप रहा।
महामारी में इंसानियत भू – जल बाँट रहा।।
आम जन कहते कोई देवता कोई धर्म नहीं कुछ लोगों की मनगढ़ंत अफवाएँ हैं।
यही बात कर रही सारी फिजाएँ हैं।।
आया अब पावन पुण्य सावन का बेला।
अब तो खत्म कर दो कोरोना का झमेला।।
समय का पहिया रुक गया।
सारा धर्म-इंसानियत झुक गया।।
हे शिव शंकर हे महाकाल।
अब दिखलाओ अपना रूप विकराल।।
हर तरफ मच रहा बवाल।
आज फिर उठ रहा तुम्हारे अस्तित्व पर सवाल।।
राज वीर शर्मा