)))मुझे मुक्त कर(((
मुझे मुक्त कर
// दिनेश एल० “जैहिंद”
खोकर विवेक मैं अपवित्र हुआ हूँ !
मैं पुरुष चरित्र से अचरित्र हुआ हूँ !!
हे खुदा, मुझे ये कैसी सजा दी है,,
कि भरे समाज में अमित्र हुआ हूँ !!
समाज मुझे वहशी-दरिंदा कहता !
मेरा विलोम शातिर परिंदा कहता !!
मुझे कितना निर्लज्ज होना होगा,,
छिन तू ये कामशक्ति-कामातुरता !!
सारे प्राणी स्वछंद विचरण करते !
हम क्यों प्रतिबंध आचरण करते !!
ये कौन-सा कुटुम्बीय बंधन दिया,,
होकर अति शर्मसार रुदन करते !!
यदि मैं भी तेरी बनाई हुई रचना !
तो मुझे क्यों नियमित है रखना !!
मुझे मुक्त कर मानवीय बंधनों से,,
मुझे भाता अन्य जीवों-सा रहना!!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
09.06 2019