शिवाला जाएगा
भले ही मुझे मेरे मन से निकाला जाएगा
जुबान – जुबान है हमसे न टाला जाएगा
आदतन मजबूर हूँ के कोई भूखा न रहे
फिर कैसे मेरे मुँह में निवाला जाएगा
मन थोड़ा नासाज है ये लग रहा है मुझे
आज शाम को मुझे लेकर शिवाला जाएगा
ज़माने की रंगत देख के रंगहीन हो गए
मुमकिन है कोई तीजा रंग डाला जाएगा
दुनियादारी सीख ही लिया है जब सबने
तो सुनो!मुझको अब मुझसे न संभाला जाएगा
सबको लग रहा है ये मेरा वक़्त बरकरार रहेगा
सुनो तालियां बजेंगी ये जिधर मतवाला जाएगा
-सिद्धार्थ गोरखपुरी