रामेश्वरम लिंग स्थापना।
रामेश्वरम लिंग स्थापना।
-आचार्य रामानंद मंडल।
बाल्मीकि रामायण में शिव लिंग स्थापना आ रामचरितमानस मे लिंग स्थापना वर्णन मे मतभिन्नता हय।
बाल्मीकि रामायण में रावण बध के बाद अयोध्या लौटते वक्त श्री राम पुष्पक विमान में सीता को लिंग स्थापना के स्थान के दिखवैत वर्णन कैले हतन –
एतत् कुक्षौ समुद्रस्य स्कन्धावारनिवेशनम्।।१९।
अत्र पूर्व महादेव:प्रसादामकरोद् विभु;।।
यह समुद्र के उदर में ही विशाल टापू है, जहां मैंने सेना का पड़ाव डाला था।यहीं पूर्व काल में भगवान महादेव ने मुझ पर कृपा की थी-सेतु बांधने से पहले मेरे द्वारा स्थापित होकर वे यहां विराजमान हुए थे।
एतत तु दृश्यते तीर्थ सागरस्य महात्मन:।।२०।।
सेतुबंध इति ख्यातं त्रैलोक्येन च पूजितम ।।
इस पुण्यस्थल में विशालकाय समुद्र का तीर्थ दिखाई देता है,जो सेतु निर्माण का मूल प्रदेश होने के कारण सेतु बंध नाम से विख्यात तथा तीनों लोकों द्वारा पूजित होगा।
रामचरितमानस के आधार पर समुद्र पर सेतु बंध निर्माण के बाद श्री राम शिव लिंग स्थापना क के सेतु बंध पर चलके समुद्र पार करैत हतन।
देखि सेतु अति सुन्दर रचना।बिहसि कृपानिधि बोले बचना।।
सेतु की अत्यंत सुंदर रचना देखकर कृपा सिन्धु श्री राम जी हंसकर बचन बोले –
परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी।।
करिहउं इहां संभु थापना।मोरे हृदयं परम कलपना।।
यह (यहांकी) भूमि परम रमणीय और उत्तम है।इसकी असीम महिमा वर्णन नहीं की जा सकती है। मैं यहां शिवजी की स्थापना करूंगा।मेरे हृदय में यह महान संकल्प है।
सुनि कपीस बहु दूत पठाए।मुनिबर सकल बोलि लै आए।।
लिंग थापि बिधिवत् करि पूजा।सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।।
श्री राम जी के वचन सुनकर वानरराज सुग्रीव ने बहुत से दूत भेजे,जो सब श्रेष्ठ मुनियों को बुलाकर ले आये। शिवलिंग की स्थापना करके विधिपूर्वक उसका पूजन किया। फिर भगवान बोले- शिवजी के समान मुझको दूसरा कोई प्रिय नहीं है।
जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं ।ये तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं।
जो गंगाजल आनि चढाइहिं।हो सआजउज्य मुक्ति नर पाइहिं।।
जो मनुष्य (मेरे स्थापित किये हुए इन) रामेश्वर जी का दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जायेंगे। और जो गंगाजल लाकर इन पर चढावेगा,वह मनुष्य सायुज्य मुक्ति पावेगा ( अर्थात मेरे साथ एक हो जायेगा)।
लाल दास कृत मिथिला रामायण मे सेतु बंध आ शिव लिंग स्थापना के विस्तार से वर्णन हय।कथा अनुसार राजा सगर सागर खने के समय ज्योति लिंग के खन के गिरा देले रहथिन।कहल गेल कि भविष्य मे हिनकर वंशज इंहा शिव लिंग स्थापना करथिन।
कयल प्रतिष्ठा विधिसौं राम। रामेश्वर लिंगक भेल नाम।।
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जे गंगाजल देत चढाय। आवागमन छूटत समुदाय।।
लालदास बाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस आ अन्य ग्रंथ के आधार पर लिखने छतन।
अन्य ग्रंथ में लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने से पहिले शिव स्थापना के चर्चा कैल गेल हय।
-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सह साहित्यकार सीतामढ़ी।