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4 Sep 2024 · 3 min read

शिमला: एक करुण क्रंदन

उत्साह था मन में शिमला का
प्रकृति के बड़ा साथ मधुर मिलन का

मार्ग में गर्मी का अहसास हुआ
पिंजौर में सूरज उबलता हुआ

ऐसा तो नहीं डगलस ने लिखा था
यह मार्ग तो ठंडा ही नहीं था

फिर अभी दिन ढलने लगा था
मौषम रुख बदलने लगा था

मार्ग में शिमला से पहले
अल्पाहार प्रबंध किया था

नाशपाती के नीचे बूटे थे
ता ऊपर युगल रूप खड़े थे

बड़े स्वाद की चाय बनी थी
बड़ी सुगन्धित पवन वही थी
कहीं कहीं पर्वत ऊँचे थे
कहीं पे बदली स्वयं झुकी थी

मूक अभी तक मुझसे शिमला था
सिमटा सिमटा सकुचाया था

मैंने ही संवाद किया फिर

क्या हुआ यह उदासी क्यों हैं ?
थकी थकी निराश सी तुम क्यों हो ?

उसने जो कहा सुन शरमाया
अपने जख्म को जब था दिखाया

आई लाज मुझे मानव की सोच पर
हाय निरीह को समझ न पाया

शिमला बोला >>>>
कहते पहाड़ों की रानी मुझको
कैसे घाव दिखाऊं तुमको

ब्रिटिश राज ने मुझे बसाया
मेरे मन में विश्वास जगाया

नियोजित कर छोटी सी नगरी
बड़े ही जतन से मुझे सजाया

विश्राम स्थली मैं बन गई उन की
ग्रीष्म की राजधानी भी बनाया

ये अंग्रेज जब भी जायेंगे
मेरे अपने तब मुझको पायेंगे

गले लगाकर अवसाद हरुंगी
जी भर उनको प्यार करुँगी

रिज़ औ माल पर आधुनिकता
प्रकृति के संग मन्त्र मुग्ध करुँगी

कुफरी में याक सवारी करेंगे
नालदेरा में प्रसन्न रखूंगी

न जाने क्या क्या सोचा था
भेंट उपहार भी सोचा था

एक पोप ने प्रयोग किया था
सेब मुझे श्रंगार दिया था

ईसाई से सनातन हुआ था
स्टोक्स से सत्यानन्द हुआ था

ऊचे पर्वत बादाम अखरोट ने
जी भर मुझको प्यार दिया था

समृद्धि खूब फलीभूत हुई
शनैः शनैः दरिद्रता दूर हुई

अब पूंजी के नव वृक्ष लगे
मोल तौल के सुर भी सुने

होने लगा फिर दोहन मेरा
आगे न सुन पायेगा मन तेरा

काट काट मेरे अंगों को
नग्न किया मेरे ही तन को

लोहा कंकरीट सीमेंट से
रंग दिया मेरे घावों को

भवन इमारत ऊँचे ऊँचे
भुला दिया मेरे भावों को

बेचो खरीदो सौदे पर सौदे
पड़ने लगी हर अंग खरोंचे

मेर बच्चे ये वन जंगल सच्चे
शेर औ चीते सियार और कुत्ते

डरने लगे मानव के शोर से
मानव कर्ता बन बैठा भोर से

मेरा सौन्दर्य अब खो बैठा
काष्ठ शिल्प कला खो बैठा

भूल गया घर प्यार दुलार
शीत लहर भरी मन्द बयार

प्रकृति संपदा न आंचल छोड़ी
मैं तो मानव से गई निचोड़ी

निर्लज्ज को फिर भी लाज न आये
नित नए बहुमंजिल भवन बनाये

जलवायु भी अब लगी बदलने
गर्मी की ऋतू लगी है आने

पर्यटक विदेशी कम ही आते
अपने मुझे समझ नहीं पाते

तूने पूछा तो ही कहा है
नहीं शिकायत अब मैं करती

रह के मूक मैं सबकुछ सहती
अंतस में घुट घुट रोती रहती

स्नेह गोद को देकर भी मैं
अपने आँचल देकर लाढ़ मैं

वानरराज को दया तब आई
अपना आतंक फ्री दिया मचाई

कहीं जंगल शिकार बने तो
मनुष्य अतिक्रमण क्रमण करे तो

उन्होंने ये साम्राज्य बनाया
अपना नया आंतंक फैलाया

करुण कथा है यह मेरी
अब जिम्मेदारी है तेरी

समझ सको तो सबसे कहना
ये वनस्पति औषधि गहना

मेरे आंचल में ही रहना
कृपया मेरी पीढ़ समझना
ये करूँ क्रन्दन शिमला का
पर्वत से घिरे सुन्दर से घर का

सुनके मेरी आँख भर आई
आह मानव तुझे लाज न आई

कैसे करेगा तू भारपाई
क्यों बना तू आताताई

ये प्रकृति देन ईश्वर की
कद्र नहीं तूने कर पाई

पानी की विकट समस्या
तेरे स्वार्थ कारण ही आई

भू स्खलन औ बादल फटना
गाँव बस्ती संग उजड़ना

तेरी करतूतें ही है लाइ
संभल अभी न देर लगाई

करूँ सचेत सावधान तुझको
कर मंथन सम्मान दे मुझको
अन्यथा
खुद से हाथ पड़ेंगे धोना
बिन आंसू के पड़ेगा रोना

Language: Hindi
2 Likes · 86 Views
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