शिखर
छू़ं पाऊंगा
क्या शिखर,
नहीं कहूँगा
करके बताऊंगा |
कोई मुक्काम पाना
मुश्किल नही होता,
जो मुश्किल हैं
उससे आसान समझ ले तो
वो बहुत दूर नही होता
पथ कुछ नवीन है
पर मैं पथिक भी अंजान नहीं
ये दुर्गम पथ को भी
सहर्ष स्वीकारा हैं,
सहर्ष ही नहीं
सहज भी स्वीकारा है
पथ के अवोरोधों पे
शैया बनकर गिरूँगा,
शिखर न छू़ं लू तब तक
हारकर भी हार न मानूँगा
कुछ करके
कुछ बनके बताऊंगा,
किया हैं खुद से वादा तो
ये पड़ाव भी पार करके बताऊंगा
युद्ध के मैदान में उतर गया हूँ
तो कायरो के तरह कायर गिरी नहीं दिखाऊँगा,
शिखर तो छू़ं के
ही बताऊंगा
चाह मुझे अपनो की नही
चाह तो मुझे सपनो की है,
उन सपनो को हक्कीकत
करके बताऊंगा
कामयाबीयों को जल्द गले लगाऊंगा
शिखर छू़ं कर बताऊंगा