शिखर
अब कहां जाऊंगा मैं
पहुंच गया शिखर पर
ठहरुंगा यहां कैसे मैं
ठंड बहुत है शिखर पर।।
जब चला था सफर पर
बहुत लोग जुड़ गए थे
जब भी आती थी कोई
मुश्किल साथ दे रहे थे।।
आगे बढ़ने में सब मेरी
पूरी मदद कर रहे थे
साथ मिलकर रास्ते
आसानी से कट रहे थे।।
जैसे जैसे मैं बढ़ता गया
पुराने साथी छूटते रहे
राहों में बढ़ते रहे बस हम
नए राही मिलते रहे।।
आ पहुंचा हूं शिखर पर
मिल गई है मंजिल मुझे
जिससे दिल की बात कहूं
दिखता नहीं कोई अब मुझे।।
ज़रूरत है उनकी मुझे
अब पहले से भी ज़्यादा
छोड़ दिया जिनको पीछे
समझकर बस एक प्यादा।।
शिखर पर अभी अच्छा
लग रहा है मुझे सबकुछ
लेकिन जो ये ढलती शाम
मेरा इंतजार कर रही है
इसे बिताने के लिए कुछ कमी
अभी से महसूस हो रही है ।।
कोई हमेशा ही तो रह
नहीं पाता शिखर पर
जो भी चढ़ता है एक दिन
उतरना पड़ता है शिखर से
साथ हो अपने तो उतरना
आसान होता है शिखर से।।
???