आख़री शिकस्त
“शिखर पर”
शिखर पर आकर जब सूर्यास्त होगा
यही मेरी आख़री शिकस्त होगी।
ना होगी माँ की ममता ना पिता का साया
हर तरफ होगा उदासियों का छाया
तब ख़ुद से ही मेरी जंग जबरदस्त होगी,
यही मेरी आख़िरी शिकस्त होगी।।
मेरा प्यार किसी और के आँगन होगा,
कोई और उनका साजन होगा,
वो बाहों में उसके मदमस्त होगी
यही मेरी आख़री शिकस्त होगी।।
छोड़ मेरा साथ मेरे अपने,
टूट जायेंगे सब मेरे सपने
जिंदगी टूट कर ग़मो से पस्त होगी,
यही मेरी आख़री शिकस्त होगी।।
मैं टूट कर ख़ुद को भुला दूंगा,
अपने असूलों को ख़ुद ही मिटा दूंगा,
तबाह होगी दुनिया मेरी आँसुओ से,
मौत ही मेरी आखरी शस्त्र होगी,
यही मेरी आख़री शिकस्त होगी।।
-तेजस