शिखर छुऊंगा एक दिन
बड़ी राह का अंजान मुसाफिर
चल पड़ा सच्चाई के कर्म पथ पे
लाखों मुश्किलें आएगी प्रचर में
फिर भी हम शिखर को छुऊंगा मैं।
बड़ी दौड़ का छोटा पथिक
शिखर ऊंचा और मैं छोटा
संघर्ष कर कर के बढूंगा आगे !
एक दिन शिखर को छुऊंगा मैं।
गुमनाम राह के सुनसान परिंदा
चल पड़ा शिखर की तलाश में
भटक भी गया तो मेहनत के बल
फिर भी हम शिखर को छुऊंगा मैं।
चल पड़ा तो वापस क्या मुड़ना !
लौटने के तो बहाने मिलेंगे हजार
कितने भी चाहे आ जाए उद्विग्नता
फिर भी अपने शिखर को छुऊंगा मैं।