*शिक्षा-संस्थाओं में शिक्षणेतर कर्मचारियों की महत्वपूर्ण भूम
शिक्षा-संस्थाओं में शिक्षणेतर कर्मचारियों की महत्वपूर्ण भूमिका
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शिक्षकों के महत्व से तो सभी परिचित है लेकिन पृष्ठभूमि में प्रायः छुप जाने वाले शिक्षणेतर कर्मचारियों की महत्वपूर्ण भूमिका अलिखित ही रह जाती है। इनकी कर्तव्य-निष्ठा के बगैर कोई भी शिक्षा-संस्थान सुचारू रूप से कार्य नहीं कर सकता।
शिक्षणेतर कर्मचारियों में वह सभी कर्मचारी आते हैं, जिनका कार्य कक्षाओं में पढ़ाना नहीं है। इसमें चपरासी से लेकर प्रधान लिपिक तक शामिल रहते हैं।
लिपिक वर्ग के महत्वपूर्ण योगदान को कदापि अनदेखा नहीं किया जा सकता। किसी भी विद्यालय का सारा रिकॉर्ड न केवल लिपिकों के द्वारा ही देखभाल करके सुरक्षित रखा जाता है बल्कि उनकी व्यवस्था इस प्रकार की जाती है कि चुटकी बजाते ही कोई भी सूचना तत्काल उपस्थित की जा सके। इन सब के पीछे लिपिकों की भारी मेहनत और कार्य-कुशलता रहती है।
जिस बात का पता प्रधानाचार्य को भी शायद न हो वह लिपिकों को मुॅंह-जुबानी याद होता है। सारी फाइलें उनकी उंगलियों पर गिनी हुई होती हैं ।छोटे से छोटे और बड़े से बड़े कार्य की ड्राफ्टिंग लिपिक के द्वारा ही की जाती है। बुद्धिमान और ईमानदार लिपिक किसी भी शिक्षण-संस्था की सबसे बड़ी पूॅंजी होते हैं। उन्होंने जो ड्राफ्ट तैयार कर दिया, उसे प्रथम दृष्टि में ही ठीक मान लिया जाता है। वरिष्ठ लिपिक से विचार विमर्श करके संस्था-प्रमुख अपनी योजनाओं और कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करते हैं।
सरकारी क्षेत्र में लिपिक की भूमिका इस दृष्टि से और भी बढ़ जाती है कि उन्हें नियमों का संपूर्ण ज्ञान होता है और वह प्रधानाचार्य के लिए अथवा यों कहिए कि संस्था के लिए पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार सुयोग्य लिपिक न केवल कार्यालय के भार को भली-भांति वहन करते हैं अपितु शिक्षा-संस्थान की गति को भी निर्बाध आगे ले चलने में अत्यंत सहायक सिद्ध होते हैं।
चपरासी का पद कहने को तो बहुत छोटा है लेकिन जब वह चौकीदार की भूमिका निभाता है तब पूरा विद्यालय उसी के कंधों पर सुरक्षित छोड़ दिया जाता है। बोर्ड परीक्षाओं आदि के विशेष अवसरों पर यह चौकीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होती है। ईमानदार और कर्तव्य-निष्ठ चौकीदार के रहते विद्यालय की गरिमा कभी धूमिल नहीं हो सकती। वह भ्रष्ट और असामाजिकता का विचार रखने वाले व्यक्तियों के साथ कभी समझौता नहीं करेगा। उसके हाथों में विद्यालय सुरक्षित है।
अगर एक अच्छा चपरासी विद्यालय के मुख्य गेट पर तैनात है तो क्या मजाल कि कोई भी अनुशासनहीन छात्र विद्यालय से बाहर भाग जाए ! चपरासी का पद छोटा ही सही लेकिन अनुशासन बनाए रखने में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।
बड़ी-बड़ी कीमती फाइलों को इधर से उधर ले जाने का काम चपरासी को प्रायः करना पड़ता है। उसकी जिम्मेदारी को कम करके नहीं ऑंका जा सकता।
विद्यालय की प्रयोगशालाओं में जो शिक्षणेतर कर्मचारी प्रयोगशाला-सहायक के रूप में कार्य करते हैं, उनकी शैक्षिक योग्यता भले ही कम हो लेकिन अगर उनमें कर्तव्य-बोध है और परिश्रम की लालसा भी है तो कुछ भी वर्षों में प्रयोगशाला में कराए जाने वाले कार्य के संबंध में उनकी जानकारी अपने आप में लगभग संपूर्ण हो जाती है। पुराने और अनुभवी प्रयोगशाला-सहायक तो कार्यों में इतने निपुण होते हैं कि वह किसी नव-नियुक्त अध्यापक को शुरू के महीनों में थोड़ा-बहुत सिखाने का काम भी कर देते हैं। तात्पर्य यह है कि शिक्षा संस्थानों में शिक्षणेतर कर्मचारी वास्तव में अभिनंदनीय हैं।
अनेक बार यह भी देखा गया है कि शिक्षणेत्तर कर्मचारी परिश्रम और मनोयोग से कार्य करते हुए अपनी शैक्षिक योग्यता में भी बढ़ोतरी करते रहते हैं और पदोन्नति के साथ-साथ शिक्षक के पद को प्राप्त करने में भी सफल रहते हैं। दरअसल उनके भीतर सुयोग्यता के बीज प्रारंभ से ही विद्यमान होते हैं। जब वह शिक्षणेतर कर्मचारी होते हैं तब भी अभिनंदननीय होते हैं और जब बाद में शिक्षक बन जाते है तब भी अभिनंदन रहते हैं।
असली बात परिश्रम, कर्तव्य निष्ठा और कार्य में ईमानदारी की है। चाहे शिक्षक हों अथवा शिक्षणेतर कर्मचारी; उनकी कार्य-कुशलता ही उन्हें महान बनाती है।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर ,उत्तर प्रदेश
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