” शिक्षा – दीक्षा, मनी -मनी है “
अभिभावक की गहन परीक्षा ,
इंटरव्यू फिर प्रवेश- समीक्षा /
शिक्षा सिमट गयी बस्ते में ,
कहाँ मिल रही अब सस्ते में /
सरकारी शिक्षा भी केवल –
खाना-पीना, खेल बनी है //
शिशुओं के कांधे पर बोझा ,
रास्ता सुगम नहीं है खोजा /
खाना-पीना ,खेल, हैं भूले ,
ट्यूशन के पलने में झूले /
वाटर टैंक में डूबते बच्चे –
मात-पिता पर आन बनी है //
शिक्षा उच्च में भारी घपले ,
प्रतियोगी स्पर्धा ही ठग ले /
जाने कैसे सबक़ सिखाते ,
आत्महत्या छात्र अपनाते /
लक्ष्य से भटके ,यहाँ भविष्य हैं –
भाग-दौड़ है , तनातंनी है //
शिक्षा का विकास हुआ है ,
नैतिकता का ह्रास हुआ है /
डिग्री लेकर, घूम रहें हैं ,
सपनों में बस, झूम रहें हैं /
अगर निराशा, पली-बढ़ी तो –
जीवन से तकरार ठनी है //
मैकाले की नीति पुरानी ,
अब निश्चय ही बदली जानी/
रोजगार संग कौशल होगा ,
तकनीकी शिक्षा बल होगा /
बुलंद होंसले ,दृढ निश्चय से –
अपनी तो पहचान बनी है //
बृज व्यास