शिक्षा गाडगे महराज
देख दशा द्रवित हुआ,
फक्कड़ संत फकीर ।
दीन दुखी का हालत पे,
लिया खींच लकीर।।
लिया खींच लकीर फकीर ने,
बन बैठा संन्यासी।
घट घट में राम बिराजे,
निर्गुण ब्रम्ह अविनाशी।।
लिया संकल्प जन सेवा का,
परोपकार उपकारी।।
धन्य हुई माता इनके,जो
कर्मयोगी संत अवतारी।।
कर्मयोगी संत शिरोमणि,
गाडगे बाबा कहलाये।
देकर संदेश शिक्षा का,
स्वच्छता अभियान चलाये।।
खटक रहा था ,दिल में इनके,
अशिक्षा की पीड़ा।
धोबी कुल में जन्म लिया,जन समुदाय कि हीरा।।
महाराष्ट्र है जन्मभूमि,
डेब्यू झिंगुरा जी नाम।
सेवा भाव मन में रखा,
हृदय पटल पर राम।।
हैं गरीबी घर में अगर,
पर न मानों हार।
शिक्षा, स्वच्छता, सभ्यता,
जन जन का खेवन हार।।
कर्मयोगी संत शिरोमणि का
एक नारा प्यारा था।
और संतों के वाणी शब्द से,
इनका संदेश न्यारा था।।
खाने का बर्तन बेच दो,
भले पंजे से खाना।
पहन लो वस्त्र फटा पुराना,
पर,, बच्चों को जरूर पढ़ाना।।
थक जायेंगे, लिखते लिखते, पढ़ते पढ़ते आप।।
अमिट महिमा संत शिरोमणि अमिट इनके छाप।।