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5 Jun 2019 · 1 min read

शिक्षा के मंदिर नहीं ,यह है शिक्षा की दुकाने (व्यंग्य कविता )

शिक्षा के मंदिर नहीं ,यह तो है शिक्षा की दुकानें ,
भला असलियत इनकी हम किस तरह पहचाने .

मार्गदर्शन के केंद्र नहीं यह सपनो के सौदागर ,
इनकी धन लोलुपता से रहते हैं हम अनजाने .

शिक्षा किसी भी श्रेणी की हो सब की कीमत तय है ,
बच्चों के माता-पिता!,जाँच लो जेबें,यूँ न बनो दीवाने .

माना बच्चों की शिक्षा ज़रूरी है भविष्य बनाने के लिए ,
मगर इससे पहले अपनी महत्वकांक्षायों को तो संभालें .

धन के पुजारी हैं इनका क्या वास्ता बच्चों के जीवन से ,
अपनी शिक्षा की दुकानों में अनदेखा करते सुरक्षा के पैमाने .

बच्चों का जीवन चाहते हो आप ,चाहते हो उनकी ख़ुशी,तो !
उड़ने दो इन रंग बिरंगी पतंगों को ,मगर रखो डोर को थामे.

Language: Hindi
1 Like · 312 Views
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