शिक्षा के मंदिर नहीं ,यह है शिक्षा की दुकाने (व्यंग्य कविता )
शिक्षा के मंदिर नहीं ,यह तो है शिक्षा की दुकानें ,
भला असलियत इनकी हम किस तरह पहचाने .
मार्गदर्शन के केंद्र नहीं यह सपनो के सौदागर ,
इनकी धन लोलुपता से रहते हैं हम अनजाने .
शिक्षा किसी भी श्रेणी की हो सब की कीमत तय है ,
बच्चों के माता-पिता!,जाँच लो जेबें,यूँ न बनो दीवाने .
माना बच्चों की शिक्षा ज़रूरी है भविष्य बनाने के लिए ,
मगर इससे पहले अपनी महत्वकांक्षायों को तो संभालें .
धन के पुजारी हैं इनका क्या वास्ता बच्चों के जीवन से ,
अपनी शिक्षा की दुकानों में अनदेखा करते सुरक्षा के पैमाने .
बच्चों का जीवन चाहते हो आप ,चाहते हो उनकी ख़ुशी,तो !
उड़ने दो इन रंग बिरंगी पतंगों को ,मगर रखो डोर को थामे.