शिक्षा का स्वरुप!
आज हमारी शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? यह हमारे शिक्षा जगत को सोचना होगा। हमारी सरकार शिक्षा के लिए जो भी कानून बनाती है, उसमें कहीं न कहीं एक कमजोर कड़ी जोड़ देती है।
वह कड़ी आगे जाकर विकराल रूप धारण कर लेती है।हम शिक्षा
ऐसी दे ,कि व्यक्ति का चरित्र निखर जाये । पर उसका चरित्र नहीं निखर पाता है। क्योंकि उसको अच्छा गुरु नही मिल पाता है।
क्या ? हम शिक्षा ग्रहण एक व्यापारी बनने के लिए ले रहे हैं।
आज कल प्रोफेशनल शिक्षा का चलन बहुत बढ़ गया है।हम सब
के सब व्यापारी बन कर पैसा कमाना चाहते हैं? यही उद्देश्य आज
के छात्र का होता है। उसे अपने देश से एवं वर्तमान स्थितियों से कोई लेना देना नही है।हमारा देश किन परिस्थितियों से गुजर रहा है।वह तो अपनी मस्ती में चूर हो कर चल रहा है। क्योंकि! उसकी
मानसिकता में जहर घोल दिया गया है।वह सोचता है कि मुझे बस! इंजीनियर बनना है। उसके मन पर एक ही भूत सवार होता है। क्योंकि वह शिक्षा के मूल सिद्धांत से भटक गया है!