शिक्षक
है शिक्षक ही जो दीपक तरह दिन रात जलता है
मुसल्सल ग़ज़ल
है शिक्षक ही जो दीपक की तरह दिन रात जलता है।
न जाने कितने सीनों के अँधेरों को निगलता है।।
तराशे है हुनर की ठोकरों से एक शिल्पी सा।
तभी बेडौल सा पत्थर हसीं मूरत में ढलता है।।
दिखे ग़ुस्ताख़ियों पर सख़्त पत्थर सा हमेशा ही।
वही हो नर्म लहजा मोम के जैसा पिघलता है।।
कहें सब दौड़ होती एक मुल्ला की तो मस्जिद तक।
तो इसका वक़्त भी स्कूल और घर में निकलता है।।
अगर है गोद में सृजन प्रलय भी पलता सीने में।
अगर आ जाये ज़िद पर तख्तों ताजों को बदलता है।।
“अनीस ” अब वक़्त है किसको भला कोई ये क्यों सोचे।
कि महंगाई में कैसे उसका ये परिवार चलता है।।
– – – – – – – -अनीस शाह