शिक्षक
बचपन के दिनों में सोचा करता
कितने महान होते थे शिक्षक,
शलिके से हमें संवारकर
खुशगवार होते थे शिक्षक
उनकी आहटो से डरते थे हम
कितनों को सुना था जल्लाद होते थे शिक्षक ।
इसके पिछे जो छिपा था भविष्य
संवारने से हमें कब बाज आते थे, शिक्षक
वो साहित्य की कक्षा, कविताओं का साथ
बड़े मजेदार होते थे शिक्षक।
शायद ही कोई असफल होता था
कामयाबी से उपर कामयाब होते थे शिक्षक,
ना मिलता था पोशाक ना क्षात्रवृति
खचाखच बच्चों के साथ होते थे शिक्षक
मजाल है कोई कुछ कह दें,
अरे हमारे बाप होते थे शिक्षक,
स्वरचित कविता:-सुशील कुमार सिंह “प्रभात”