शिक्षक दिवस
चरण- वन्दना मातु- पिता की
परमेश्वर सम देवाचायॆ की।
उत्पत्ति और पोषकता हित
नमन उन्हें अनुपम औदायॆ की
स्वर- व्यंजन का उच्चारण
प्रथम ज्ञान -श्रेय मातु को ।
‘अम्मा’ औ ‘बुआ’ की रटना
सिखा रही थी बाल को।।
अ औ ब’ की सीख सिखाकर
आगे बढ़ते च की ओर ।
च से चाचा , म से मामा
न से नाना , ज पे जोर ।।
सब अक्षर का मन्त्र यही
अब चल मंजिल की ओर।
प्रथम पाठशाला परिवार
जीवन- पथ की सुन्दर भोर।।
दया, प्रेम, ममता की शिक्षा
सभ्य समाज का यही आईना
संस्कार से सजे मनुजता
नागरिकता का यही मायना।
विद्यालय विद्या का सागर
शिक्षक तो पतवार है ।
जीवन के झंझावातों से
करता नैया पार है ।।
वशिष्ठ ,संदीपन औ द्रोण गुरू
गुरुकुल के संरक्षक हैं।
राम-कृष्ण, अर्जुन से शिष्य
युग-युग के संवाहक हैं ।।
भारत – भूमि ऋणी रहेगी
सर्वपल्ली शिक्षाविदों से।
जन्मदिन को किया समर्पित
पाँच सितम्बर शिक्षोत्सव से।
शत- शत नमन दिव्य गुरु को
ज्ञानालोकित हमें किया है।
देव-गुणों से झोली भर दी
मानव जन्म सफल किया है।।
स्वरचित : डाॅ. रेखा सक्सेना