शिक्षक को शिक्षण करने दो
छात्रों का बौद्धिक स्तर ही शाला का आकर्षण होगा।
शिक्षक को शिक्षण करने दो गुणवत्ता संवर्धन होगा।।
बाबू कभी कभी चपरासी कभी सफाईकर्मी है।
अपने पद अपनी प्रभुता की तनिक न सर्दी गर्मी है।
शिक्षा के उपवन का माली बना कुशल बावर्ची है।
घृणा खरीदी खून पसीने की दौलत जब खर्ची है।
नकारात्मक अभिप्रेरण से कभी न गुणता दर्शन होगा।
नित्य नवीन योजनाओं ने भूल भुलैया में ला पटका।
सबको मार्ग दिखाने वाला बीच राह में खुद आ भटका।
आँख न अब दिखती अर्जुन को जंगल पूरा दीख रहा।
दृढ़ संकल्पित रहने वाला विचलित होना सीख रहा।
मार्ग भ्रमित सारे संसाधन कैसे युग परिवर्तन होगा।।
संदेशों से निर्देशों से उपदेशों से जन्म न लेगी।
उत्कृष्टता कला है सच्ची आदेशों से जन्म न लेगी।
मँजे हुए को फिर फिर माँजो निश्चित है घिस जाएगा।
पूर्ण प्रशिक्षित प्रशिक्षणों की चक्की में पिस जाएगा।
कृत्रिमता से नैसर्गिकता का न सफल संचालन होगा।।
संजय नारायण