****शिकायत****
मेरे गांव की तगं गली मे एक बूढा जोडा रहता है,
संग सजनी बेटा उनका बिदेश मे चांदी कमाता है।
तीज, दिवाली व राखी पर महज फर्ज निभाता है,
दिवस दो चार बिताकर लला वापस लौट जाता है।
एक दिन बोला बूढा लला क्यू हमको तरसाता है,
घर के एकांत शून्य मे तेरी माँ का जी घबराता है।
सुनकर बाते उनकी बेटा एक तरकीब सुझाता है,
शहर के जगंल से उनको मोबाईल लाकर देता है।
गर्वित होकर लला उस यन्त्र की महीमा बताता है,
बोला बापू ये दूर बैठे को आपस मे बाते कराता है।
दे ये ज्ञान जन्मदाताओ को निश्चित सा हो जाता है,
सजनी बच्चो संग फिर नरजगंल मे लौट आता है।
रोज बूढा लालायित सा हो मोबाईल को देखता है,
सोच विचार के मन ही मन समाधान नही पाता है।
क्यो मेरे लला का अब मिस्कॉल भी नही आता है,
मिस्टेक है मशीन मे सोचकर बेबस सा सो जाता है।
भौर उठते ही बूढा बाप गाँव के चौक मे पहुंचता है,
श्री कलुवा मेकेनिक को देकर आवाज बुलवाता है।
कलुवा देख इसमे लला का कॉल क्यू नही आता है,
जबकी रात ये सारी चपला भी खूब गटकता है।
कलुवा झटपट यन्त्र का पोस्टमार्टम कर देता है,
एक पल मे सबकुछ जानकर चकरा सा जाता है।
कैसे बताऊ ये सोचकर वो मन ही मन घबराता है,
की लला ने मोबाईल मे सिमकार्ड कहा लगाया है।
देख मिस्त्री को उलझन मे बूढा फिर फरमाता है,
क्यो रे!कलुवा बता मुझे कौन बात वो छिपाता है।
सिमकार्ड कहा इसमे बूढे को मिस्त्री समझाता है
सुन ये बूढे को कलेजा फटता सा मालूम पडता है।
©®तूलिकार
✍️ प्रदीप कुमार “निश्छल”