शिकायत तो नहीं कोई
हमें तुमसे शिकायत तो नहीं कोई
कि तुमने की शरारत तो नहीं कोई।
हमें तुम मान सकते हो अजीज़ों में
कि हम करते अदावत तो नहीं कोई।
जलाओ आंधियों में तुम दिये बेशक
हमें तूफां की हसरत तो नहीं कोई।
हुए हम ही दिवाने है तेरा अरमां
कि तुझको भी मुहब्बत तो नहीं कोई।
करेंगे हम वफ़ाएं आपसे लेकिन
ख़ुदा की ये इबादत तो नहीं कोई।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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