शिकायतें
मैं अपनी सारी रातें तुझपे कुर्बान कर दिया
इश्क़ में ख़ुद को ही अंजान कर दिया ।
तुमसे मिलना महज़ कुदरत का करिश्मा था
जान जान कहकर मुझें बेजान कर दिया ।
इंसानों की इस बस्ती में नफ़रतें बेहिसाब है
इंसान ख़ुद को यहां हैवान कर दिया ।
तुमसे मिलकर जानां अब खोया सा रहता हूं
तुम्हारी सारी बातें मुझें परेशान कर दिया ।
खुदा को भी न बख्शें तुमने तो यहां पे
इधर इबादत की उधर एहसान कर दिया ।
मतलबी दुनिया में कौन किसका है ‘हसीब’
लोग इंसां को इंसां नही रहमान कर दिया ।
– हसीब अनवर