शिक़ायत है, एक नई ग़ज़ल, विनीत सिंह शायर
कल तक तो कहते थे उन्हे मुझसे मुहब्बत है
आँखों में उनकी आज फिर ये क्यों बगावत है
बहकता तो नहीं था मैं कभी भी जाम से इतना
साक़ी तेरे शराब में कुछ तो मिलावट है
सितम ये है ज़माने का कि तुम से मिल नहीं सकते
तेरे चक्कर में जानेमन हमारा ज़ब्त ज़मानत है
तबियत सुधर जाए नज़र जो डाल दे हम पर
यानी तेरी पलको का उठना भी क़यामत है
तुझे देखे से नज़रों की हमारी प्यास बुझती है
मेरी होंठों को तेरे होंठ से लेकिन शिक़ायत है
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar