शिकवा ईश्वर से
ए मालिक! तेरी दुनिया ,में आकर हम तो परेशान है।
खुद ही के खुद पर रोने से और फिर हसने पर है हैं।
तू भूल गया मै न भूली इस दुनिया के व्यवहारों को।
गर्दिश में यूं अपनी किस्मत के भ्टके हुए सितारों को।
हम टूट टूट कर हार चुके और मंजिल से अंजान है।
खुद ही के खुद पर रोने से और फिर हंसने पर हैरान हैं।
क्या शिकवा करे अब दुनिया से जब खुद से ही हम हर चुके
।किस्मत का मोती ढूंढने में हम अपनी उम्र गुज़ार चुके।
किस्मत के सताए हारे थके हम टूटे हुए इंसान हैं।
खुद ही के खुद पर रोने से और फिर हंसने पर हैरान हैं।
ऐसा तो नहीं दस्तूर हमें बिलकुल ही निभाना न आए।
टेढ़े मेढे इन रास्तों पर बिल्कुल ही चलना न आए।
रेखा के थके हैं आज क़दम ये नयन यूंही परेशान हैं।
खुद —