शाही महल की दुर्दशा(लेख)
अतीत की यादें
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शाही महल की दुर्दशा : मेरे सामने देखते – देखते आयोजकों ने मिट्टी के बर्तनों को सुतली से बहुमूल्य चित्र पर कील गाड़ कर लटका दिया
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घटना 1990 – 95 के आसपास की होगी । सही-सही वर्ष तो याद नहीं । नवाब रामपुर के शाही महल – कोठी खास बाग – में यह विवाह समारोह था। दोपहर के समय मैं वहाँ गया था । घरेलू विवाह की रस्में चल रही थीं। उन्हीं रस्मों में एक रस्म मिट्टी की छोटी-छोटी कटोरियों को छेद करके सुतली में पिरो कर उन्हें किसी खूँटे से लटकाया जाना था । इसके लिए दीवार पर एक खूँटी की आवश्यकता सबको जान पड़ रही थी। चारों तरफ देखा । कोई खूँटी नजर नहीं आई। तब मेजबान में से एक सज्जन ने हाथ में हथौड़ी ली ,एक कील उठाई और दीवारों पर लगी हुई किसी तस्वीर पर उस कील को ठोंक दिया तथा मिट्टी की कटोरियों को उस पर सुतली से लटका दिया । दीवार पर जो पेंटिंग थीं, उनमें नवाबों के आदमकद चित्र भी शामिल थे। बाद में कई दशक बाद जब चित्रों के मूल्यांकन की रिपोर्ट अखबार में आनी शुरू हुई ,तब पता चला कि यह तो किसी विश्व प्रसिद्ध चित्रकार द्वारा बनाए गए तैल – चित्र थे ,जिनका मूल्य लाखों – करोड़ों रुपए में आँका गया था । प्रायः चीजों की बेकद्री इसी प्रकार होती है। जिसको मँगनई दी जाती है ,वह केवल अपना काम निकालता है और इस प्रक्रिया में वस्तुओं का कितना दुरुपयोग होता है तथा उनको कितनी हानि पहुँच जाती है ,इसका अनुमान कोई लगा भी नहीं पाता।
1966 में नवाब रजा अली खाँ की मृत्यु के उपरांत एक दशक बीतने से पहले ही कोठी खास बाग का उपयोग शादी – ब्याह तथा अन्य प्रकार के समारोहों के आयोजनों के लिए होटल के रूप में होना आरंभ हो गया था । 1966 तक जब तक नवाब रजा अली खाँ जीवित रहे ,लोग बताते हैं कि कोठी खास बाग का रुतबा तथा उसका रख-रखाव सही प्रकार से चलता रहा। बाद में नवाब साहब के सबसे बड़े पुत्र उत्तराधिकारी बने । उनको नवाब की पद- पदवी और प्रिवीपर्स दिया जाता रहा। लेकिन 1970 के आसपास प्रिवीपर्स की समाप्ति भारत सरकार द्वारा कर दी गई । प्रिवीपर्स की रकम जो आजादी के समय तय की गई थी ,वह दो दशकों में अपेक्षाकृत बहुत छोटी रकम रह गई थी । लेकिन फिर भी राजा और नवाब की पदवी का एक विशेष महत्व हुआ करता था । प्रिवीपर्स की समाप्ति ने राजशाही को पूरी तरह इतिहास की वस्तु बना दिया।
केवल इतना ही नहीं मुकदमेबाजियों में कोठी खास बाग की संपत्ति घिर गई और उसके बाद 50 वर्ष तक उपेक्षा का एक दौर शुरू होने लगा । राहे रजा अर्थात मौलाना मौहम्मद अली जौहर रोड पर कोठी खास बाग का प्रवेश द्वार नौबत खाना के नाम से विख्यात था । ऐसा कहा जाता है कि इस द्वार पर् नौबत अर्थात शहनाई रोजाना बजती थी और इसी के आधार पर इस दरवाजे का नाम ही नौबतखाना पड़ गया । नौबत खाने का दरवाजा बाद में जिस टूटी- फूटी और उजड़ी हुई स्थिति में आ गया, उससे इसको नौबतखाना कहते हुए भी संकोच होता था और यह तो कोई सोच भी नहीं सकता था कि इतिहास का कोई ऐसा दौर भी हुआ होगा , जब इस दरवाजे पर नौबत बजा करती थी ।
जब अखबारों में कोठी खास बाग का संपत्ति – विवाद प्रकाशित होने लगा तथा उसके भीतर की स्थिति जाँच के आधार पर समाचार पत्रों में तस्वीरों के साथ प्रकाशित होने लगी और यह पता चला कि भीतर से यह कभी महल कहलाने वाली इमारत कितनी बदहाली का शिकार है , तब मैंने उन चित्रों के आधार पर कई कविताएँ /कुंडलियाँ लिखी । वह फेसबुक पर प्रकाशित भी हुईं। बाद में अखबारों में महल की भीतरी बदहाली का हाल प्रकाशित होना किसी कारणवश रुक गया। लेकिन इन सब बातों से यह तो पता चलता ही है कि मुकदमेबाजियों से कितना नुकसान होता है, तथा चीजें किस तरह से छिन्न-भिन्न तथा जीर्ण – शीर्ण हो जाती हैं।।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451