शाश्वत सत्य
असली खोज तो शाश्वत सत्य की है
पर भटक जाती हूँ,
समाज में इतनी मिलावट है
है की असली भी नकली – – –
और नकली भीअसली नज़र आता है
और में असली -नकली में फंस कर रह जाती हूँ
आगे ही नहीं बढ पाती – – –
मैं शाश्वत सत्य की बातें करना चाहती हूं
सत्य की खोज उसकी वास्तविकता को
समझना चाहती हूं
मुखौटों केआकर्षण देख
अक्सर मोहित हो जाती हूं
मुखौटों के पीछे का सत्य कैसा होगा
यह राज – – राज ही रह जाता है
मैं शाश्वत सत्य की बातें
करना चाहती हूं
मुखौटों के बाजार में
कौन है असली
कौन है नकली
पहचान करना चाहती हूं
अरे! यहां तो !
नकली भी खालिस नहीं
असली भी मिलावटी
अब जायें तो जायें कहां
नकली भी असली नहीं
असलियत का चेहरा तो
अब नजर ही नहीं आता
किसकी खोज कर रही हूं मैं
खोजते -खोजते मैं भी बदल रही हूं
उम्र का एक दौर पार कर चुकी हूं
मुखौटों के आकर्षण देख
अक्सर मोहित हो जाती हूं
मुखौटों के पीछे का सत्य कैसा होगा
मैं शाश्वत सत्य की बातें करना चाहती हूं
सत्य की खोज उसकी वास्तविकता को
समझना चाहती हूं ।