शायर
विवश किया है लिखने को कुछ
मौंसम की अंगराई ने,
और अपनी तनहाई ने
कि
“बसंत आ गया है.”
मधुवन के मंजर भींने कहते,
कहते भौंरों के गुंजार
मदमाती हवा की रूख से
हिलोरें खाती डालों पर बैठी
पपीहा अपनी हर आह में गा गयी है,
बसंत की ऋतु आगई है.
दुनियाँ बसंत की रंगीनियों में
मौंजें मना रही है
कोयलिया पंचम धुन गा रही है.
लेकिन मैं……….!
मैं दुनियाँ से अकेला बैठा हूँ.
कवि शायर की जिंदगी भी एक अजीब होती है दास्तान
अनकही अनपढ़ी
जिसके दिल में
दूसरों के दिल के दर्द को
आँखों पे आई सर्द को
बाँटने की
और छुपाने की
एक अनुभूति होती है
और
मानवता के प्रति एक असीम स्नेह होता है
और इसी स्नेह, अनुभूति आँसू का नाम शायद
शायर होता है.