शायरी
रोज़ मुमकिन नहीं तारे का टूटना
मेरी मन्नत पे सूरज उगा दीजीए,
दीजिए रुख़सती अपनी दहलीज़ से
अपने लब से मुझे बस दुआ दीजीए
रोज़ मुमकिन नहीं तारे का टूटना
मेरी मन्नत पे सूरज उगा दीजीए,
दीजिए रुख़सती अपनी दहलीज़ से
अपने लब से मुझे बस दुआ दीजीए