शायरी
किसी का रूठ जाना भी , क़यामत के बराबर है
महज भूकंप आना ही जरूरी तो नहीं होता।
जुदाई ही कहीं काफी है मेरी मौत के खातिर
निवाला ज़हर का खाना ज़रूरी तो नहीं होता।
शक्ति त्रिपाठी देव
किसी का रूठ जाना भी , क़यामत के बराबर है
महज भूकंप आना ही जरूरी तो नहीं होता।
जुदाई ही कहीं काफी है मेरी मौत के खातिर
निवाला ज़हर का खाना ज़रूरी तो नहीं होता।
शक्ति त्रिपाठी देव