— शायरी —
?ओ जिंदगी मैं थक गया हूँ तेरी गुलामी कर कर के,?
मुझ से तेरा यह बोझ अब उठाया नहीं जाता, ?
रोज रोज की मुसीबतों से सर खपाया नहीं जाता,?
तुझे हक़ है तू वापिस ले ले अपनी गुलामी भरी जिंदगी,?
इतना अब दम नहीं रहा जिस्म में मेरे,
मुझ से तेरा यह भार अब उठाना नहीं जाता ?
अजीत कुमार तलवार
मेरठ