मुक्तक
1- हमने बुलंदी पे जाने की कसम खाई थी।
अपनों ने फलक से नीचे खींचने की कसम खाई थी।।
2- खामोश रहो तो सब है।
कह दो गर तो सब विलिन है।।
3- सारे खिड़की – दरवाजे बंद कर दो
झुठ की लगा दो पहरेदारी
छल – प्रपंच का बुन लो जाल
रुह को बहला लो फुसला लो
मगर
सच तो आॅक्सीजन है
दरारों – छिद्रों से चला ही आता है।
4- जो नजर से गिर जाते हैं
वो आंखों में सजते नहीं कभी।
जो नजर में सजते हैं
वो आंखों से बहते नहीं कभी।।
~रश्मि