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31 May 2024 · 1 min read

शायरी 1

सुर्ख़ सफ़ाह, आबनूसी निगाहें,
क़मर सी सूरत, ये जामे काही।
औ’ जुल्फ़ें शुतुरी, अदाएँ क़ातिल,
तुम्हारी गर्दन कोई सुराही।
तुम्हारे आशिक़ हैं कितने सारे —
दिलों पे खंजर के वार सहते,
निगाहें मैंने, मिलाईं तुमसे ,
मेरे भी दिल में उठी तबाही।।

— सूर्या

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