शायरी की राह
अक्ल पर पत्थर पड़े थे
जो ये गत कर ली
अच्छी खासी नौकरी छोड़
शायरी की राह पकड़ ली
क्या पैसे आते
अच्छे नहीं लगते थे
क्या ऐशो आराम
तुमको चुभते थे ?
अब बनाओ बजट,
फूंक के रखो कदम
कीमत देख के खरीदो
जेब में नहीं रहा दम
क्या कहा?
बचपन का शौक है
अरे बचपन तो गया,
बुढ़ापे में क्यों सर फिरा
कमाने से
बनता है रुतबा
मिलती है इज्जत,
बढ़ता ओहदा
अब घर बैठ के
रोटी बनाओ………..
नौकरी क्यों छोङी
सबको बताओ
चित्रा बिष्ट
(मौलिक रचना)