शायरी- अँधेरा
इतना तो दर्द लाज़िम है ‘दवे’बेलौस जवानी में,
बारिश हो अश्क़ों की हर प्रेम कहानी में।
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अँधेरा ख़ौफ़ज़दा है उजालों की आहट पाकर,
कभी कभी चिराग़ भी जलते है चाहत पाकर।
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दर्द इतना ही लिख मेरे ख़ुदा,
कि उफ् तो निकले पर ‘आह’ न निकल जाए।
इतना ही तड़फा किसी को,
कि जीने की चाह न निकल जाए।
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