शायद
उनको संकोच सा रहा शायद
पूछते वरना वो पता शायद
दे गए दर्द और वो हमको
दे रहे थे कोई दवा शायद
हम जिये तो मगर यूँ मर मरकर
रोग ही लाइलाज था शायद
उड़ गये होश बात ही सुनकर
डर गए देख आइना शायद
बन गई कुछ तो है ग़ज़ल अपनी
चल गया लगता काफिया शायद
नींद टूटी तो रुक गये सपने
वरना रुकता न सिलसिला शायद
‘अर्चना’ से लगा लिया दिल है
फल गई कोई सी दुआ शायद
26-10-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद